सवेरे का समय। देर हो गई थी। आशीष दफ्तर की तरफ दौड़ते सोच रहा था– ‘कई बार जब जल्दी हो, तो ये बसें भी कछुआ चाल से चलती हैं। दफ्तर की इमारत देखते ही उसने राहत की सांस ली– ‘चलो, पहुंच गया। दफ्तर के सामने वाली सड़क पर रेड लाइट के कारण बसों, स्कूटर, आटो, कारों की लंबी लाइन लगी थी। तभी ग्रीन लाइट हो गई थी। वाहन तेज चलने लगे, सामने खड़ी बस भी। तभी पीछे से एक बुजुर्ग दौड़ते हुए आए। बस में चढऩे की कोशिश में पैर फिसला और गिर पड़े। उनका सिर फुटपाथ से टकराया। आशीष उन्हें उठाने दौड़ा। उसने उन्हें एक तरफ बिठाया। घबराहट में और कुछ नहीं सूझा, तो सामने पान की दुकान से एक ठंडा पेय खरीदकर लाया। उसने बोतल फौरन उनके मुंह से लगा दी। दूसरे हाथ से पीठ सहलाने लगा। चोट के कारण उनके माथे पर सूजन आ गई थी। आशीष ने पूछा, ‘आप ठीक हैं? बुजुर्ग ने हां में सिर हिलाया। तभी आशीष के साथ काम करने वाले दो लड़के विनय और रेहान वहां से गुजरे। पूरी बात सुनकर उन्होंने कहा, ‘इन्हें अंदर ले चलते हैं। हो सकता है ऑफिस के डॉक्टर साहब आ गए हों। वे उन्हें अंदर लाए और दफ्तर के रिसेप्शन पर बिठा दिया। रेहान ने ऑफिस की डिस्पेंसरी में फोन किया। डॉ. सिंह आ गए थे। पूरी बात सुनकर उन्होंने कहा कि वह अपने फस्र्ट एड बॉक्स के साथ वहीं आ रहे हैं, क्योंकि डिस्पेंसरी तक आने के लिए बुजुर्ग को सीढिय़ां चढऩी पड़ेंगी। जल्दी ही डॉक्टर सिंह आ गए। उन्होंने बुजुर्ग की जांच की। कहीं और चोट तो नहीं लगी, यह देखा। फिर माथे की सूजन पर मरहम लगाया। दर्द निवारक दवा दी। डॉ. सिंह जब जाने लगे तो आशीष और उसके दोस्तों ने उनसे पूछा, ‘सब ठीक तो है डॉ. साहब? डॉ. सिंह बोले, ‘लग तो रहा है। खैरियत है कि कहीं च्यादा चोट नहीं लगी। फुटपाथ पर टकराने से तो सिर फट भी सकता था। हड्डी भी टूट सकती थी। आशीष ने अब बुजुर्ग से पूछा कि वह कहां जा रहे थे। बुजुर्ग बोले, ‘अपने घर। उन्होंने यह भी कहा कि अब वह ठीक महसूस कर रहे हैं। अपने आप चले जाएंगे। लेकिन आशीष नहीं माना। बोला, ‘नहीं अंकल, हम आपको ऐसे अकेले नहीं जाने देंगे। आपको आराम की जरूरत है। हम में से कोई आपको घर छोड़ आएगा। विनय ने कहा, ‘मेरी कार तो यहीं खड़ी है। मैं छोड़ आता हूं। बुजुर्ग के मना करने पर भी विनय अपनी कार ले आया। जाते हुए बुजुर्ग ने बहुत आशीर्वाद दिया। कहा, ‘बेटा, हमेशा खुश रहो। हम जैसे लोगों का सहारा, तुम जैसे नौजवान ही बनते हैं, जो हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए आगे आते हैं। भलाई में बड़ी ताकत होती है। यही ताकत तुम्हें आगे बढ़ाएगी। विनय के साथ उनके जाने के बाद आशीष और रेहान को याद आया कि अरे, उन्हें तो अपने विभाग में जाना है। वे फौरन लिफ्ट से अपने दफ्तर पहुंचे। अभी बैठे ही थे कि अंदर से बॉस का बुलावा आ पहुंचा। बॉस ने नाराजगी से कहा, ‘इतनी देर से… ये आने का टाइम है? आज तुम्हारी एबसेंट लगेगी। आशीष ने डरते–डरते सारी बात बताई। यह भी कि विनय को तो अभी और देर हो जाएगी। क्योंकि वह बुजुर्ग को छोडऩे उनके घर गया है। बात पूरी भी नहीं हुई थी कि बॉस मुस्कुराते हुए, खड़े हो गए। बोले, ‘मैं बेकार में तुम पर नाराज हो रहा था। इस डिपार्टमेंट को तुम पर गर्व है। ऐसे अच्छे काम के लिए तुम तीनों को इनाम मिलना चाहिए। मैं चाहूंगा कि इस बार का स्टार अवार्ड तुम तीनों को ही मिले। कल का लंच मेरी तरफ से। कहते हुए उन्होंने तालियां बजाईं। अपने केबिन से बाहर आकर दफ्तर के सभी लोगों को इस बारे में बताया। कहा, ‘इस तरह के होनहार लड़के सिर्फ हमारे ऑफिस में ही नहीं, हर जगह होने चाहिए। दफ्तर के बाकी लोगों ने भी कहा कि बुजुर्ग और उनके घरवालों का आशीर्वाद तो मिलेगा ही। जिसे भी इस बारे में पता चलेगा, जो भी सुनेगा, वह इस काम की तारीफ करेगा। जल्दी ही पूरे दफ्तर में सबको पता चल गया था। आशीष, विनय, रेहान को स्टार अवार्ड दिया गया था। वे यहां के हीरो बन गए थे। उन्हें बुजुर्ग की कही बात बार–बार याद आती–भलाई में बड़ी ताकत होती है। –क्षमा शर्मा
श्री रामचरितमानस की सीख
पर हित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।
निर्नय सकल पुरान बेद कर।
कहेऊं तात जानहिं कोबिद नर।।

रामचरितमानस में परहित को ही सबसे बड़ा धर्म स्वीकार किया गया है। जितने भी अन्य धर्म हैं उनमें जाति-वर्ग-अपना-पराया कुछ न कुछ बंधन तो आवश्यक आ ही जाता है और व्यक्ति उस समय यह नहीं समझ पाता है कि क्या करें ? क्या न करें? पर ! परहित द्वन्द रहित शब्द है। इसमें न तो कोई जाति का नाम है न देश का और न ही धर्म का। काकभुशुण्डि जी कहते हैं कि गरुण जी जिसमें दूसरे का हित हो वही करना चाहिए और कभी भी जिसमें दूसरे को पीड़ा हो वह कार्य नहीं करना चाहिए। यह पूरे समस्त वेद और पुराणों का अकाट्य निर्णय है।इसको बुद्धिमान लोग जानते हैं। जो मनुष्य का शरीर केवल भगवान की कृपा से प्राप्त होता है, उसको पाकर मोह वश यदि उसका उपयोग कोई दूसरों को कष्ट देने में करे तो उस व्यक्ति के वर्तमान के द्वारा ही भविष्य का सर्वनाश कर दिया जाता है। इसीलिए जो भगवान के भक्त हैं वे बड़े सयाने होते हैं , कि संसार प्रपंच जो छोड़कर अपने प्रभु का ही भजन करते हैं और भवसागर को पार कर लेते हैं। भगवान विभीषण से कहते हैं कि मेरे सगुण विग्रह की उपासना करने बाला दूसरों का हितकारी अवश्य ही होता है। सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम। ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम ।। परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं।। संत दूसरे को सुख देने के लिए, परहित के लिए बड़ेंगे बड़ा कष्ट सह लेते हैं, और असंत दूसरे को कष्ट देने के लिए बड़े से बड़ा कष्ट सह लेते हैं।
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