स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों का पालन | हम तो चले घूमने
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कोरोना के कारण सब घर में बंद रहकर तंग आ चुके थे। पापा का आफिस बंद, अध्यापिका मम्मी और मीता का स्कूल बंद। बाजार बंद, दफ्तर, बस, रेल, सब बंद। एक दिन मम्मी ने मजाक में कहा था- ‘मुझे तो लगता है किसी दिन सूरज, चांद भी कह देंगे कि उन्हें भी कोरोना से डर लग रहा है। वे भी खुद को बंद कर लेंगे।यह सुन मीता बोली- ‘लेकिन वे खुद को बंद कैसे करेंगे? इतना बड़ा घर कहां से मिलेगा, जिसमें खुद को छिपा लें। हमारे घर में छिपने को आ गए तो।-‘तू है न। बना देना उनके लिए इतना बड़ा बक्सा या कोई जादू की छड़ी ले आना, जिससे छोटा करके अपने बस्ते में छिपा ले और दोस्तों को दिखाने के लिए स्कूल ले जाए। तुझे तो वैसे भी इस तरह की कहानियां पसंद हैं।मम्मी ने मजाक किया। -ओह, गुड आइडिया। आज ही मैं इस पर एक पेंटिंग बनाऊंगी। धीरे-धीरे जब कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पडऩे लगी और क्रमवार लाकडाउन खुलने लगा तो एक दिन मम्मी की पक्की सहेली शिल्पी आंटी का फोन आया। कहने लगीं- ‘कहां तो हमेशा यह लगता था कि कब दफ्तर की छुट्टी हो, तो घर में रहें, लेकिन अब घर में रह-रहकर इतने बोर हो गए हैं कि कहीं जाने का मन कर रहा है।मम्मी ने पूछा-‘कहां।-‘यही तो सोच रही हूं। च्यादा दिन के लिए नहीं जाना चाहती। कोरोना अभी पूरी तरह से गया भी नहीं है।
– ‘तो शिमला चलें।
– ‘न बाबा न। मेरी मां कहती थीं कि बारिश के दिनों में पहाड़ों पर कभी नहीं जाना चाहिए। फिसल कर गिरने का डर रहता है। इन दिनों तो पूरे के पूरे पहाड़ फिसल-फिसलकर गिर रहे हैं।कहती हुई शिल्पी आंटी जोर से हंसीं। फिर बोलीं- ‘वृंदावन चलें।
– ‘चल सकते हैं। कैसे जाएंगे।
– ‘वैन कर लेंगे। खाना अपना बनाकर ले चलेंगे, जिससे बाहर कुछ खाने की जरूरत कम ही पड़े। कोशिश करेंगे कि उसी दिन लौट आएं।मम्मी को उनकी बात पसंद आई। पल के पल में प्रोग्राम पक्का हो गया। पापा को पता चला तो वह भी फौरन चलने को राजी हो गए। शनिवार को जाना था, इसलिए मम्मी ने बहुत से सामान का आर्डर दिया। नमकीन, बिसकुट, चिप्स, पेय, फल। फिर धुले कपड़े प्रेस करने के लिए दे दिए। अटैची खाली कर ली। जरूरत का जो समान चाहिए, वह एक जगह रख लिया। मम्मी-पापा, मीता, शिल्पी आंटी, अंकल, उनका बेटा रोहन, सब जब वैन में बैठकर निकले, तो रोहन बोला- ‘इतने दिनों बाद कहीं जा रहे हैं तो लग रहा है जैसे चांद की सैर पर जा रहे हैं।-‘हां अपनी यह वैन ही तो इसरो का चंद्रयान है। और तू के शिवन है मि. इसरो चीफ।मीता मुसकराई। -‘तो तू भी कोई कम नहीं, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स का मिक्स।रोहन बोला।
– ‘कल्पना चावला, न बाबा, इतनी जल्दी ऊपर नहीं जाना।-‘तो चंद्रयान में क्या पाताल लोक में जाएगी।रोहन ने कहा तो सब हंसने लगे। वे यमुना एक्सप्रेस वे से जा रहे थे। वैन इतनी तेज दौड़ रही थी कि हवाई जहाज भी शरमाए। पापा ने टोका भी- ‘जरा, धीरे चलाओ। इस रोड पर एक्सीडेंट बहुत होते हैं। खेत, खलिहान को पार करते, वे जल्दी ही वृंदावन पहुंच गए। वहां निधि वन, बांके बिहारी का मंदिर, रंग जी का मंदिर आदि देखते दोपहर हो गई। सबने खूब मोटी मलाई की लस्सी भी पी थी, इसलिए खाना खाने का मन भी नहीं कर रहा था। मीता और रोहन हर जगह बैठे बंदरों से डर रहे थे। वैसे भी वैन के ड्राइवर ने बता दिया था कि पर्स, चश्मा और मोबाइल संभालकर रखें। वरना बंदर छीन ले जाएंगे। तभी मीता ने वहां कई वृद्धाओं को देखा, जिन्होंने सफेद रंग की सूती साडिय़ां पहन रखी थीं। उनके बाल बहुत छोटे-छोटे थे। वे मंजीरा बजाकर भजन गा रही थीं। उसने कहा-‘क्या ये ही हैं वृंदावन की विधवाएं, जिनके बारे में मैंने पढ़ा था।मम्मी ने कहा- ‘हां, ये ही होंगी। इतने दिन हो गए हमारे देश को आजाद हुए, मगर अभी तक पति के मर जाने पर इन्हें यहां लाकर छोड़ दिया जाता है।रोहन भी सारी बातें सुन रहा था। कहने लगा- ‘आंटी मैंने महाराष्ट्र की समाज सुधारक सावित्री बाई फुले जी केबारे में पढ़ा था। उन्हेंं ये बात बहुत नापसंद थी कि ऐसी महिलाओं के बाल काट दिए जाएं। इसके लिए उन्होंने बाल काटने वालों का एक जुलूस पुणे में निकाला था। जहां उन्होंने तय किया था कि वे अब कभी ऐसी स्त्रियों के बाल नहीं काटेंगे।यह सुनकर मीता के पापा बोले- ‘मैंने भी उनके बारे में एक किताब पढ़ी थी। जहां तक याद है, उनका जन्म 1831 में हुआ था। सोचो कि आज से दस साल बाद उनकी दूसरी जन्मशती होगी। और इन महिलाओं के बाल आज तक काटे जा रहे हैं।शिल्पी आंटी और मीता की मम्मी उदास हो गईं। मीता कहने लगी-‘मम्मी, मुझे भी इनके लिए कुछ करना है। रोहन ने कहा, ‘मुझे भी, लेकिन क्या करें। कैसे करें। तब रोहन के पापा ने सुझाया- ‘इस बार तो हमें लौटना है। मगर अगली बार च्यादा समय के लिए सिर्फ इसीलिए आएंगे कि इनकी कोई मदद कर सकें जिससे कि इनकी जिंदगी में भी रोशनी फैल सके। स्वाधीनता के आदर्शों को कायम रखना हमारा संवैधानिक कत्र्तव्य है। कुरीतियों को दूर करना भी तो एक आदर्श है।उनकी बात सुनकर सब खुश हो गए। मीता और रोहन ने तय किया कि वे अपने स्कूल में दूसरे बच्चों से भी इस बारे में बात करेंगे। सावित्री बाई फुले जी के बारे में भी बताएंगे। जरूर कुछ अच्छा होगा।
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